*देव भूमि की एक ऐसी देवी जिन्होंने गृहस्थ जीवन मे रहकर की तपस्या

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*देव भूमि की एक ऐसी देवी जिन्होंने गृहस्थ जीवन मे रहकर की बड़ी तपस्या*

हरगिज विश्वास नही होगा पर वैवाहिक जीवन के 37 सालों में सिर्फ 4 बार ही जा पाई हैं मायके

*हेम कांडपाल*
हमारा मंच हमारी बात ग्रुप के माध्यम से देव भूमि की देवियां अभियान शुरु किया गया है l इसकी शुरुआत शैलेश मटियानी पुरस्कार प्राप्त श्री नृपेंद्र जोशी जी की पत्नी श्रीमती बीना जोशी के साथ हुई बातचीत से शुरू कर रहा हूं।
दोनों का विवाह 1987 में हुआ था, बीना जी का मायका पिथौरागढ़ है l उनके ससुर स्वर्गीय श्री जीवानन्द जोशी सरकारी इंटर कालेज में प्रधानाचार्य थे l उनके तीनों जेठों में महेंद्र जोशी असिस्टेंट लेबर कमिश्नर से सेवानिवृत्त हैं, देवेंद्र जोशी एमईएस में अधीक्षण अभियंता से सेवानिवृत्त व डॉक्टर हेमंत जोशी स्वास्थ्य निदेशक कुमाऊं पद से सेवानिवृत्त हैं जबकि पति नृपेंद्र जोशी राउमा विद्यालय भटकोट में प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हैं l पुत्र लोकेश जोशी एलएलबी करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ ही ऑनलाइन वर्क भी कर रहे हैं l

कहने का तात्पर्य यह है कि हर तरफ से धन सम्पदा से सम्पन्न परिवार की बहू बीना जी ने गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक तपस्वी की तरह जो साधना की है उसका वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता है l
घर की सबसे छोटी परिवार में सबकी दुलारी इस बहु का 37 साल का सफर पूरी तरह से परिवार व परिजनों को समर्पित रहा ससुराल के प्रति समर्पण का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि वे 37 सालों के वैवाहिक जीवन मे सिर्फ चार बार ही अपने मायके पिथौरागढ़ जा पाई हैं l वे 21 साल पहले 2003 में मायके गई थीं l तब से नही जा पाई l

उन्होंने घर परिवार की जिम्मेदारी के साथ ही 34 साल तक दिव्यांग बेटी रेनु की सेवा की l उसे नहलाने, खिलाने से लेकर उसकी हर जरूरत का ध्यान रखा l वे बेटी की सेवा में इस तरह से समर्पित रही कि किसी भी धार्मिक व सामाजिक आयोजन तो दूर घर की शादियों के लिए भी मुश्किल से ही समय नही निकाल पाई l दुर्भाग्यवश रेनु संसार को छोड़ गई l उसके बाद बीना जी ने किसी तरह खुद को संभालने के साथ ही पति के कार्यों में भी पूरा सहयोग किया l

नृपेंद्र जी रामलीला व अन्य धार्मिक कार्यक्रम में व्यस्त रहने के चलते देर रात तक घर पहुंचते हैं तो वे उनके इंतजार में रुकी रहती हैं, उनके लौटने पर ही भोजन करती हैं l
जब नृपेंद्र जी को शैलेश मटियानी पुरस्कार मिलने पर हर जगह सम्मान मिल रहा था l तब मुझे बीना जी की साधना का ध्यान आया, मुझे लगा कि इस पुरस्कार के पीछे असली मेहनत तो उन्हीं की है l
बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जिन्होंने उन्हें देखा होगा l बड़े भाई नृपेंद्र जी के घर मेरा अक्सर आना जाना लगा रहता है l पर पूज्यनीय बीना भाभी की सादगी, सहृदयता, आतिथ्य सत्कार व विनम्रता ने मुझे बहुत प्रभावित किया l
कुशल पूछने के बाद वे बस उतना ही बोलती हैं जितना उनसे पूछा जाता है l
वे एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर भी ऐसी साधना की है जिसकी कल्पना आज के युग मे नही की जा सकती है।
*हेम कांडपाल*
*हमारा मंच, हमारी बात*

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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