जमी पर मुस्कुरायेगा हिमालय का ये आंचल और मुस्कुराते तारों पे हम- जगदीश चन्द्र बौड़ाई

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कुसुमलता बौड़ाई, लेखिका

मै उत्तराखंड की युवा हूं और “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नही आनी” इस कहावत से मैं हमेशा आहत ही रही हूं ।

जब से होश संभाला है तब से गर्व से खुद को पहाड़ी कहा है, हर जगह अपनी संस्कृति को दिखाने का प्रयास किया है। खूबसूरत पहाड़ सिर्फ खूबसूरत ही नही है , उनमें पीड़ा है वेदना है दर्द है ।
पलायन की चोट एक तरफ और दूसरी तरफ पहाड़ों की छाती चीरते हुए बनाए जा रहे रिजोर्ट और होटल । केदारनाथ जैसी संवेदनशील और इको सेंसिटिव जगह में थार जैसी गाड़ियों का दौडना, तरफ संस्कृति खत्म होती दिख रही है।

उत्तराखंड को छोड़कर सभी जगह मूल निवास 1950 लागू है , सन् 2000 में झारखंड और छत्तीसगढ भी बने और उत्तराखंड भी पर वहां मूल निवास दिया गया पर उत्तराखंड में नही । जबकि लगभग 83% उत्तराखंडी मूल निवासी है। प्रत्येक राज्य का भू संरक्षण हेतु अपना भूमि कानून होता है एवं पर्वतीय राज्यों को एक इस विषय में विशेष अधिकार प्राप्त है परंतु उत्तराखंड का भू कानून बहुत लचीला एवं कमजोर है जबकि अन्य पर्वतीय राज्यों में सशक्त भू कानून है।

आर्टिकल 371 आर्टिकल 371 किसी भी राज्य को विशेष प्रावधान भूमि संरक्षण संस्कृतिक धार्मिक आदि मामलों में देता है बाकी पर्वतीय राज्यों में यह व्यवस्था होने के बावजूद या उत्तराखंड में लागू नहीं है। उत्तराखंड में उत्तराखंड को आर्टिकल 371 के अंतर्गत केंद्र सरकार से कौन-कौन से विशेष अधिकार चाहिए उत्तराखंड राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग पर्वतीय विकास बोर्ड बने उत्तराखंड में राज्य की भूमि संबंधित मामलों के लिए राज्य सरकार की सहमति के बिना केंद्र सरकार भूमि संबंधित मामलों में कानून नहीं बना सकती। उत्तराखंड में विधानसभा सीटों पर प्रवेश सीमित क्षेत्रफल के आधार पर हो, यह अधिकार हमें भारतीय संविधान देता है उत्तराखंड में राज्य और संस्कृति और रीति-रिवाजों से संबंधित मामलों में राज्य सरकार की सहमति के बिना केंद्र सरकार संस्कृति एवं रीति-रिवाजों से संबंधित मामलों में कानून नहीं बना सकती है।

उत्तराखंड में इनर लाइन परमिट में यदि कोई बाहरी व्यक्ति आता है तो उसे राज्य में प्रवेश के लिए इनर लाइन परमिट की आवश्यकता पड़ेगी और जब वह इसके लिए आवेदन करेगा तो अपना संपूर्ण ब्यौरा भी देना पड़ेगा। ऐसे में यदि कोई अपराधिक घटना होती है तो राज्य के पास इसे ट्रैक करने के लिए उसका डाटा रहेगा। इससे राज्य में लव जिहाद लड़कियों का अपहरण हत्या और चोरी जैसे अपराधिक घटनाओं पर लगाम लगेगी।

अगर यहां अभी अधिकार उत्तराखंडियों को नहीं मिला तो आने वाले कुछ ही वर्षों बाद पर्वतीय क्षेत्र का ना ही कोई मुख्यमंत्री बनेगा और कुछ ही समय बाद यहां के मूल निवासी अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। हमारी संस्कृति रीति रीति रिवाज एवं बोली भाषा विलुप्त होने की कगार पर आ जाएगी। कुछ समय बाद पर्वतीय क्षेत्रों में विधानसभा सीटें कम और मैदानी क्षेत्रों में ज्यादा हो जाएगी। जिस कारण पर्वतीय क्षेत्र की विकास दर रुक जाएगी।अपराधिक घटनाएं बढ़ेगी जिससे असुरक्षा का माहौल बनेगा और कही ना कही उत्तराखंड में कश्मीर जैसे हालत होंगे ।

उत्तराखंड ऐसे ही नही मिला था इसके लिए 200 से अधिक लोग शहीद हुए थे । उस समय केन्द्र में भाजपा की सरकार थी और राज्य बनने पर आई कांग्रेस पर ये दिल्ली के दल अच्छे से जानते थे की उत्तराखंड सोने की चिड़िया है जिसका कंकड कंकड तक अच्छे दाम में बिक जाएगा और वही से शुरूआत हुई, आज 70% नेताओं और मंत्रियों के खनन व्यापार हैं उत्तराखंड में ।

जंगलाद की भूमि 30% थी। सन् 2000 में जो बढकर हाल ही में 72-75% हो गई है, जंगल तो कट रहे हैं पर भूमि कैसे बढ़ रही है?? और फिर वही भूमि अपने मनमाने दाम में लाला और बनियों को बेची जा रही है । खनन और होटलों की वजह से नदी नौले सुखते जा रहे हैं ।
हाल ही में देहरादून से मसूरी के लिए रोपवे बना जो 15 मिनट में मसूरी पहुंचवा देगा, इसके लिए 84 पहाड़ी मूल निवासियों को बेघर किया गया और किसी तराई क्षेत्र मे जमीन दे दी गई, क्या ये खिलवाड नही है ???
भले ही नेता पहाड़ी है पर इनके सरोकार दिल्ली में ऐसी मे बैठै है जो कागजों मे नीति बनाते हैं तो तुगलकी फरमान की तरह उत्तराखंड में भेज देते हैं।

पहाड़ी बहुत सरल होते हैं पहाड़ को तरह, पर पहाड़ियों का जीवन होता है उतना ही कठिन, पहाड़ी चाहते हैं समाधान सरल, मूल भूत सुविधाओं के अलावा पहाड़ियों ने कभी कुछ मांगा ही नही ।
प्रकृति ने पहाड़ियों को कुशन हुनर भेंट करी और यदि इसमें थोड़ा भी पहाड़ी निति से काम होता जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, जैविक खेती, कुटिर व्यवसाय, बागवानी, आयुर्वेदा तो आज पहाड़ जैसे दिखते हैं वैसे होते, खुबसूरत और भरे हुए ।

24 साल की हो गई हूं मै और मेरा ये उत्तराखंड 24 साल से प्रतिक्षा कर रहा है पर आज भी नेता यही कहते हैं की हमारी लाश पर भू कानून मूल निवास आएगा तो अब हम विनती नही करेंगे । नेता भगवान नही जनता के सेवक हैं और मै उत्तराखंड का युवा “OPEN DOOR” की तरफ से ये “OPENLY” की ये लड़ाई हमारे अस्तित्व की है और इसे हम हर हालत में लडेंगे और जितेंगे ।
दो लाईन मेरी तरफ से –
बात जब देवभूमि के लिए जान देने की आएगी तो लडाई में सबसे आगे रहेंगे हम,
जमी पर मुस्कुराएगा हिमालय का ये आंचल और मुस्कुराते तारों पे हम।

मै भारतीय सैनिक और राज्य आंदोलनकारी जगदीश चन्द्र बौड़ाई ग्राम सल्ट, अल्मोडा से सभी पहाड़ियों को और उत्तराखंडिओ को ये वचन देती हूं की उत्तराखंड को बर्बाद नही होने दिया जाएगा। अभी तक कई रैली , धरने विरोध हो चुके, अब संग्राम होगा, बस आशीर्वाद और प्यार और विश्वास बनाए रखें । हमारे बड़े लड़े उत्तराखंड बनाने के लिए और अब हम लड़ेंगे उत्तराखंड बचाने के लिए।
जयहिंद जय भारत जय उत्तराखंड ।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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