मसूरी: पद्मश्री मिलने में 16 दिन की देरी, ह्यूग गैट्जर की नाराज़गी ने खोली सरकारी तंत्र की उदासीनता

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पद्मश्री मिलने में 16 दिन की देरी, ह्यूग गैट्जर की नाराज़गी ने खोली सरकारी तंत्र की उदासीनता

रिपोर्टर सुनील सोनकर

मसूरी में शिक्षा और साहित्य में अद्वितीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित ह्यूग गैट्जर और उनकी पत्नी कोलीन गैट्जर (मरणोपरांत) को आखिरकार 16 दिन की देरी से उत्तराखंड प्रशासन की ओर से यह सम्मान सौंपा गया। लेकिन यह देरी खुद गैट्जर के लिए गहरी नाराज़गी और अपमान का कारण बन गई। 27 जून को राष्ट्रपति भवन में आयोजित पद्म पुरस्कार समारोह में ह्यूग गैट्जर स्वास्थ्य कारणों से शामिल नहीं हो पाए। इसके चलते केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वे व्यक्तिगत रूप से गैट्जर को उनका पद्मश्री मेडल, मिनिएचर और ब्रोशर प्रदान करें।

यह पत्र 18 जून को सचिवालय में प्राप्त हो चुका था। लेकिन हैरानी की बात है कि इस निर्देश पर 16 दिन तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। 6 जुलाई को जब उत्तराखंड के गृह सचिव शैलेश बगोली एक टीम के साथ गैट्जर के मसूरी स्थित आवास पहुंचे, तो उन्हें कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा। ह्यूग गैट्जर ने साफ शब्दों में कहा, “यह सिर्फ एक पदक नहीं, यह राष्ट्र का सम्मान है। अगर इसे देने में भी तत्परता नहीं दिखाई जा सकती, तो ये देश के लिए शर्म की बात है।”

गैट्जर इतने आहत थे कि पहले उन्होंने पद्मश्री लेने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे इस लापरवाही की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर करेंगे। गैट्जर की नाराज़गी को देखकर अधिकारियों की हालत पतली हो गई। देर शाम तक अधिकारी उन्हें मनाते रहे। मसूरी जैसे शांत शहर में यह मामला एक चर्चित विषय बन गया। स्थानीय लोगों के बीच यह सवाल गूंजने लगा कि आखिर एक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?

आखिरकार गैट्जर को मनाया गया और उन्होंने पद्मश्री सम्मान स्वीकार कर लिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने उत्तराखंड प्रशासन की कार्यप्रणाली और सम्मान के प्रति लापरवाही को उजागर कर दिया। गौरतलब है कि ह्यूग गैट्जर की पत्नी कोलीन गैट्जर को भी मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया गया। दोनों लंबे समय से मसूरी में रहकर अंग्रेज़ी साहित्य, पर्यावरण संरक्षण और पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान देते आ रहे हैं। उनकी रचनाएं उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और जीवनशैली को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने में सहायक रही हैं।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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