‼ऋषि चिंतन‼ परमात्मा की अनंत अनुकंपा

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‼ऋषि चिंतन‼
परमात्मा की अनंत अनुकंपा

👉 *भगवान् सदा सभी के साथ है, वह घट-घट वासी और सर्वव्यापी होने के कारण जहाँ भी हम रहते हैं वहाँ हमारे साथ ओत- प्रोत रहा हुआ होता है।* इस विश्व में तिल-भर भी ऐसा स्थान नहीं जहाँ भगवान् न हो। *हमारी हर साँस के साथ वह भीतर जाता और बाहर निकलता है।* रक्त की हर तरंग के साथ वह अंग-प्रत्यंग पर प्रतिक्षण दौड़ता है, हृदय की हर धड़कन के साथ उसका ताल-वाद्य बजता रहता है। *जब हम सो जाते हैं तब भी हमारी चौकसी के लिये जागता रहता है।* माता की गोदी की तरह निद्रा की चादर से ढककर वह हमें अपनी छाती से चिपका कर सुलाया करता है। जब सब ओर से जीव अशान्त और क्रान्त होकर थका हुआ चकनाचूर होता है तो निद्रा के रूप में परमात्मा की गोदी ही उसे विश्रान्ति प्रदान करती है। *असमर्थ जीव को चिरनिद्रा में सुलाकर क्लोरोफार्म देकर आपरेशन करने वाले और सड़ा अंग काटकर उसकी जगह नया अंग लगा देने वाले कुशल डॉक्टर की तरह वही पुनर्जन्म की व्यवस्था करता है, मृत्यु और कुछ नहीं एक गहरी चिरनिद्रा मात्र होती है।*

👉 *प्रभु की अनन्त अनुकम्पा को हर घड़ी अनुभव किया जा सकता है।* उसके इतने अनन्त अनुदान अपने को प्राप्त हैं कि एक- एक पर विचार करने से ऐसा लगता है मानों सृष्टि की सारी विभूति उसने अपने ही लिए बनाकर रख दी है और वस्तु का मनमाना उपयोग करने की पूरी-पूरी छूट दी गई है। इठला कर बहती हुई नदियाँ, शान्ति से निकलते हुए सरोवर, मधुर मुस्काते हुए पुष्प चहकते हुए पक्षी, उमड़-घुमड़कर गरजते-बरसते बादल, लहलहाती हरियाली, आकाश चूमने वाले पर्वत, जिधर भी दृष्टि डाली जाय उधर ही प्रकृति का अनन्त सौन्दर्य बिखरा पड़ा है और हर कोई मनचाही मात्रा में उसका पूरा-पूरा निर्बाध रसास्वादन करने को स्वतंत्र है।

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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