*तीलू रौतेली के नाम पर सम्मान, लेकिन क्षेत्र की अनदेखी*

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जनप्रतिनिधियों की अनदेखी से क्षेत्र की उपेक्षा

 विधायक के दर्शन को तरसता विधायक महंत दिलीप रावत का क्षेत्र बीरोंखाल, मन मर्जी के कदमताल रहती है विधायक की क्षेत्र की ओर

बीरोंखाल(पौड़ी गढ़वाल)। बीते दिनों विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाली महिलाओं को वीरांगना तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उत्तराखंड को पूरा विश्व देवभूमि के नाम से जानता है और देवताओं की भूमि इस राज्य ने कई क्षेत्रों में अपनी पहचान भी बनाई है, लेकिन इसकी गहराई में जाकर देखो तो कितने ही बहुत सारे दर्द और जख्म यहां बहुत छुपे बैठे हैं। यहां से कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों से विधायक रहे,
लेकिन क्षेत्र की बदहाली की ओर देखना किसी ने भी मुनासिब नहीं समझा।

हम बात करें अपने उत्तराखंड के 13 जनपदों में तो सबसे बड़ी चीज यह भी तो सियासतदां को याद रखनी चाहिए कि जिस राज्य के नाम पर वह सत्ता का सुख ले रहे हैं, उसे राज्य के पौराणिक लोगों ने किस तरह से अपने लहू को पानी की तरह वहा करके और इस राज्य की स्थापना के लिए बड़ा जबरदस्त काम किया। तीलू रौतेली के क्षेत्र आज देश दुनिया में पहचाना तो जाता है, लेकिन दुखद हैकि यहां के जनप्रतिनिधियों ने ही यहां के विकास के लिए कुछ नहीं किया। वर्तमान विधायक शायद ही कभी इस क्षेत्र में लंबे दौरे पर आए हो। मैं जब तीलू रौतेला की जन्मस्थली की तरफ गया तो मेरे ही एक बुजुर्ग चाचाजी ने बताया कि यही वह स्थान है, जहां पर स्नान करते हुए तीलू को बेरहमी से ब्रिटिश शासन ने मार दिया था। उनके वस्त्र पहनने का जो तरीका था, वह एक युवा की तरह था।

जिस वक्त वह स्नान करने गई, उस समय किसी गुप्तचर ने यह सूचना दुश्मनों को दे दी कि तीलू युवा नहीं, बल्कि एक महिला के रूप में हैं। तभी दुश्मनों ने घेरकर उन्हें इस भूमि पर शहीद कर दिया। नयार घाटी के किनारे जिस तरह से तीलू रौतेली को मारा गया, वहां आज भी राज्य सरकार उस जगह को एक स्थान तक नहीं दे पाई है। यहां के जनप्रतिनिधियों ने इस क्षेत्र के विकास की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। ऐसे में यह क्षेत्र अभी भी विकास के क्षेत्र में पीछे दूर खड़ा नजर आता है।

*हर वर्ष होता है बॉलीबॉल प्रतियोगिता का आयोजन*
तीलू रौतेली की याद में कांडा गल्ला में हर वर्ष वालीबाल प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, लेकिन बड़ा ही दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में जब भी सम्मान समारोह होता है, इस क्षेत्र की इतनी अनदेखी हो जाती है कि कभी-कभी लगता है कि उत्तर प्रदेश में ही हम लोग ठीक थे। कम से कम वहां पर हमारा एक व्यक्ति अच्छा प्रतिनिधित्व करता था और लोगों की भावनाओं की भी कदर होती थी। आज राज्य तो मिल गया, लेकिन इस क्षेत्र को विकास की किण नसीब नहीं हुई। आज तीलू रौतेली के नाम पर जनप्रतिनिधि वोट तो ले जाते हैं, लेकिन वास्तव में उन्हों पता ही नहीं कि तीलू रौतेली आखिर किस हस्ती का नाम है।

*प्रदेशवासियों का गौरव हैं वीरांगना तीलू रौतेली*
वीरांगना तीलू रौतेली, जो सिर्फ 15 साल की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और जिसने अगले सात सालों में सात युद्ध लड़ते हुए 13 गढ़ जीत लिए थे। तीलू रौतेली का जन्म 17वीं सदी में पौड़ी जिले के गुराड गांव में हुआ था। एक दौर था, जब कल्पूरी राजवंश लगभग समाप्त हो चुका था। कुमाऊं में चंद और गढ़वाल में पंवार राजवंश का शासन था। हालांकि कत्यूरी अभी भी जगह-जगह लूटपाट और अशांति फैला रहे थे। गढ़वाल में तब छोटे-छोटे गढ़ थे, जिनकी कमान कभी राजा, कभी किसी भड और कभी किसी थोकदार के हाथ में होती थी। कत्यूरी राजा धामसाही ने तब गढ़वाल और कुमाऊं के सीमांत क्षेत्र खेरागढ़ पर आक्रमण कर अपना अधिपत्य जमा लिया।

इसी गढ़ को मुक्त करते हुए तीलू के पिता और भाई वीरगति को प्राप्त हुए थे, और इसी घटना को एक नाबालिग बच्ची को वीरांगना बनाने की नींव डाली थी। इस घटना पर पिता भूप सिंह अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे और इसलिए गढ़वाल नरेश ने उन्हे चौंदकोट परगने की कमान सौंपी थी। तोलू के दो भाई थे भगतु पथ्या। विन्दुवा कैन्तुरा ने जय चौदकोट पर आक्रमण किया तो इन दोनों भाइ‌यों ने उसे खदेड़ा था। इस युद्ध में दोनों भाइयो के शरीर पर 42 घाव आए थे। तब गढ़वाल नरेश ने इनकी वीरता को देखते हुए इन्हें 42 गांव ईनाम में दिए थे।

तीलू का वास्तविक नाम तिलोत्तमा था। उसने बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी सीखना शुरू कर दिया था। इनके गुरु शिवदत्त पोखरियाल इन्हें 15 वर्ष की उम्र में ही पारंगत बना दिया था। जब तीलू 15 साल की हुई तो उनकी सगाई चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के बेटे भवानी सिंह के साथ कर दी गई। तीलू की घोड़ी का नाम विन्दुली था, जिस पर सवार होकर निकली उसकी सेना में डंगवाल, असवाल, गोर्ला, सजवाण, बंगारी, ढौंडियाल, पोखरियाल, बौड़ाई, जोशी, सुंद्रियाल जातियों के योद्धा थे। 22 वर्ष की उम्र में तीलू रौतेली ने मासीगढ़, सराईखेत, खैरागढ़ और भौनखाल सहित 13 गढ़ों पर अपनी विजय पताका फहराई। सभी 13 गढ़ों को जीतने के बाद अपने मूल गढ़ कांडा पहुंची।

यहां उन्होंने अपने गुरु शिवदत्त पोखरियाल के साथ मिलकर अपने पितरों को तर्पण दिया। तीलू जब अपने तल्ला कांडा शिविर के पास नयार नदी में स्नान कर रही थीं. तब उन्होंने अपनी तलवार, हाल और कवच किनारे पर रखे थे। मौके का फायदा उठाते हुए रामू रजवाड़ नाम के कत्यूरी सैनिक ने निहत्थी तीलू पर छिपकर वार कर दिया, जिसमें उनकी शहादत हो गई। तीलू रौतेली का जीवन और उनकी वीरता का पराक्रम उत्तराखंड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने अपने राज्य, अपने लोगों और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए जो संघर्ष किया, वह आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके अद्वितीय साहस ने उन्हें ‘गढ़वाल की इवंसी की रानी’ के रूप में प्रसिद् कर दिया।

उनकी याद में उत्तराखंड सरकार ने सन 2006 में तीलू रौतेली पुरस्कार की स्थापना की, जो अदम्य साहस, समर्पण और जनसरोकारों के लिए महिलाओं को प्रदान किया जाता है। उनके नाम से उत्तराखंड में एक पेंशन योजना भी है, जो कृषि कार्य करते हुए विकलांग हो चुकी महिलाओं को समर्पित है। तीलू रौलेली याद में कांडा गांव और बीरोखाल में हर वर्ष एक मेले का आयोजन होता है इसमें ढोल दमाऊं और निसांण के साथ उनकी मूर्ति की पूजा की जाती है। उनकी याद में कुछ गीत, नाटक और जागर भी लिखे गए है। गर्मियों में जब बारिश नहीं होती है तो कांडा और तलाई सभी क्षेत्रीय लोग तीलू रौतेली की पूजा करते हैं। नयार नदी के दोनों साइड के लोगों में लड़ाई लड़ी जाती है और बारिश हो जाती है।

तल्लाई सहित आसपास के लोग जब नयार नदी के झूला पुल से निकलते हैं तो उनकी निगाहें वीरांगना तीलू के स्मारक पर स्वताः ही पड़ जाती है।

गर्मियों में जब बारिश नहीं होती है तो कांडा और तलाई सभी क्षेत्रीय लोग उसकी पूजा करते हैं मिलकर न्यार नदी में दोनों साइड के लोगों में लड़ाई लड़ी जाती है पानी से और बारिश हो जाती है

तीलू रौतेली के गाँव कांडा की महिलाएं उनकी वीरगस्था पर बात करती।

खबर- श्री भास्कर पोखरियाल (वरिष्ठ पत्रकार)

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दया जोशी (संपादक)

श्री केदार दर्शन

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